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AI: Hindi Story By R P Rai
मुहल्ले की नहरिया पाठशाला में एक साल नींव मजबूत करने के बाद जब मेरा एडमिशन शहर के एक कान्वेण्ट स्कूल में हुआ तो अपनी नयी यूनीफार्म देखकर ही मैं खुशी से झूम उठा। सफेद कमीज, नीली हाफ पैण्ट, लाल बेल्ट, मोनोग्राम कढ़ी हुई टाई, काले जूते, सफेद मोजा ऊपर से नया-नया बैग, जिसमें ढेर सारी रंग-बिरंगी किताबें, कापियां, पेंसिल, रबर आदि। टिफिन बाक्स और पानी की बोतल अलग से । जब पहले दिन मैं स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ तो दादी ने कजरौटा लाकर एक बड़ा सा काला टीका मेरे माथे के किनारे लगा दिया। पड़ोस से मुल्लू भइया कैमरा लेकर पहॅुच गये और दनादन फोटोग्राफी का दौर शुरू हो गया। चाची (मुल्लू भइया की माताजी) ने साड़ी के खुंटे से रेजगारी निकालकर निछावर किया। भइया अपनी साइकिल पर बिठाकर मुझे स्कूल छोड़ने आये। क्लास रूम खोजकर अगली सीट खाली कराकर मुझे बैठाया और टिफिन खोलना, पानी पी लेना, बदमाशी मत करना आदि तमाम हिदायतें देते हुए चले गये। स्कूल की विशालकाय बिल्डिंग, बड़ा सा मैदान, भॉति-भॉति के झूले, गमलों और क्यारियों में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे फूल, क्लास रूम में रंगीन डेस्क और बेंच, दीवाल पर लगा ब्लैक बोर्ड, खिलखिलाते बशे। कहां मेरी नहरिया पाठशाला और कहां यह परियों का देश। मैं तो भक्कू हो गया। थोड़ी ही देर में घंटी बजी तो सारे बशे लाइन बनाकर मैदान में इक्टठा हुए। माइक पर गूंजती आवाज में प्रार्थना और प्रिंसिपल के भाषण के बाद राष्ट्रगान हुआ। क्लास रूम में वापस पहुंचते ही पहला पीरियड हिन्दी का। मिस ने ब्लैक बोर्ड पर हिन्दी स्वर लिखकर बशों से अपनी-अपनी कापी पर उतारने के लिए कहा। थोड़ी देर बाद बोर्ड पर लिखे प्रत्येक स्वर को स्वयं बोल-बोलकर सस्वर पाठ कराने लगीं। सब तो ठीक था मगर बोर्ड पर 'ए ऐ' के स्थान पर 'ऐ एै' देखकर मैं खड़ा हो गया।
क्या है?, एक करने जाना है? मिस ने कड़कती आवाज में पूछा। स्कूल में लघुशंका के लिए एक और दीर्घशंका के लिए दो कोडवर्ड था। ''नहीं मिस।'' मैं हड़क कर धीरे से बोला। हाथ की छड़ी लहराते मेरे पास आकर मिस फिर बोलीं- ''तब क्या बात है? क्यों खड़े हो?'' मैं बोर्ड की ओर इशारा करते हुए मिमियाती आवाज में बोला, ''जी मिस... वो... वो.. ए ऐ... ठीक कर दीजिये।'' मिस ने बोर्ड की ओर देखा और फिर मेरे माथे पर लगे बड़े से काले टीके को देखकर उनके तने हुए चेहरे पर हल्की सी व्यंगात्मक मुस्कान आई।
''ये बलैक स्पाटॅ कल से मत लगाकर आना। सब ठीक-ठीक समझ जाओगे'' क्लास में बशों का ठहाका लगा तो मैं खिसिया कर बैठ गया। मेरी नहरिया पाठशाला की सारी पढ़ाई पहले ही दिन चरमरा उठी। एक-एक करके चार पीरियड बीता तो इण्टरवल में बशों के टिफिन बाक्स खुलते ही भॉति-भॉति की सुगन्ध से कमरा महक उठा। मैदान में धमा-चौकड़ी का दौर शुरू हुआ। एक बशे से टकराकर मैं गिरा तो एक गमला शहीद हो गया। मैं प्रिंसिपल के सामने पेश किया गया। मेरी स्कूल डायरी में दस रूपया फाइन नोट हो गया। छुट्टी होने पर भइया मुझे लेने आये तो चाल में हल्की लंगड़ाहट देखते ही पूछ बैठे,- ''का हो ! ई का हुआ? किये न खुराफात पहिल ही दिने।'' गमले से टकराकर मेरे पैर में अच्छी खासी चोट लग गई थी। मैंने पूरा किस्सा रास्ते में साइकिल पर बैठे-बैठे ही भइया को सुना डाला। घर पहॅुचकर अपनी स्कूल डायरी और हिन्दी की कापी दिखायी तो भइया माथा पकड़कर बैठ गये।
''चल बिहनें तोहरे मिस अऊर प्रेंसपल सबकर खबर लेब।'' मेरी तो हालत खराब। रात भर सपने में मिस की लहराती हुई लम्बी सी छड़ी ऑखों के सामने नाचती रही। मामला पिताजी की अदालत में पेश हुआ तो सबकी राय से सहमति बनी कि भइया और पिताजी मुझे साथ लेकर स्कूल जायेंगे।
स्कूल में प्रिंसिपल के कमरे में फिर अदालत लगी और मैं मुल्जिम की तरह कोने में खड़ा रहा। पहले प्रिंसिपल ने गमला तोड़ने की शिकायत की । पिताजी आग्नेय नेत्रों से मेरी ओर देखते हुए जुर्माना भरने के लिए जेब से पर्स निकालने को उद्यत हुए तो भइया ने उन्हें रोक दिया। अब भइया का प्रवचन शुरू हुआ। ए प्रेंसपल साहब! पहले ई बताइये कि जब बशों को मैदान में दौड़ने की छूट दी गयी है तो वहां गमला रखा क्यों है? गमला रखा है तो ऐसा कइसे हो गया कि तनी से लड़के के गिरने से फूट गया। हम तो आपके स्कूल में लड़के को अनुशासन सिखाने भेजे अउर इहां लइका धींगा मुस्ती सीख रहा है। गमला तूड़ रहा है। कउनों अनुशासन आपके स्कूल में है कि नहीं। अब एक तो हमारे सीधे-साधे बाबू ने आपके स्कूल में पहिल ही दिने बदमाशी भी सीखली, छुट्टा दऊड़ रहा है अऊर उप्पर से गमला बिशे में रख दिये हैं कि बेटा तूड़ा और मॉ-बाप की मेहनत की कमाई से दंड भरवाओ। सौ बात की एक बात। लइका गलती किया तो सजा लइकवे को दीजिये न। मारिये-पीटिये चाहे जो करिये। ई दंड लइका के बाप-महतारी से काहें भरवा रहे हैं। अइसे तो लइकवे का मन बढ़ेगा। रोज तूड़ेगा एक गमला अऊर रोज आपका चवन्नी का गमला दस रूपिया में धरायेगा। लइका को चोट लगी तो ओकर पट्टी-ओट्टी तक आपने बंधवाया नहीं अऊर दन्न दे शिकायत ठोंक दिये। ई कउनों नियाव की बात तो है नहीं।'' इतना बोलकर भइया सांस लेने रूके तो पिताजी कुछ बोलना चाहे मगर भइया का आवेशित चेहरा देखकर फिर चुप हो गये। भइया फिर बदस्तूर चालू हो गये। ''अब तनी अपनी हिन्दी मिस को बुलाइये । हम तो ई लइका को सिखाने पढ़ाने इहां भेजे हैं। ई तो लगता है कि जऊन जानता है इहां भूला जायेगा। ई रही इसकी हिन्दी की कापी। तनी देखिये। ई का लिखा है। ऐ अउर एै''। भइया इन दोनों स्वरों के उशारण में मुंह ढेढ़ा करते हुए और हाथ नचाते हुए ऐसा गरजें की प्रिंसिपल के बगल के कमरे से अनेक टीचर वहां पहॅुच गई। एक वरिष्ठ टीचर कापी देखकर तुरंत बोलीं- ''यह तो बिल्कुल गलत है। क्या यह टीचर ने लिखाया है, अगर ऐसा है तो क्लास के सारे बशों ने ऐसा ही लिखा होगा।'' तुरन्त मेरी क्लास के कुछ अन्य बशों की कापियां भी मंगवाई गई। उन सभी में यही त्रुटि थी। कमरे में उपस्थित स्कूल के सारे स्टाफ को तो जैसे सॉप सूॅघ गया। प्रिंसिपल बगलें झांकने लगे। पिताजी ने तुरंत निर्णय लिया।
''सर! मेरा लड़का बहुत बदमाश है। यह आपके स्कूल में रहेगा तो रोज कुछ न कुछ खुराफात करेगा। अब मैं इतना सम्पन्न तो हॅू नहीं कि स्कूल फीस और अन्य खर्चो के साथ-साथ हर महीने सौ दो सौ रूपया अलग से दंड भरूॅ। आप ऐसा करिये कि इसका नाम काट दीजिये। कल से यह यहां पढ़ने नहीं आयेगा।'' इतना बोलकर पिताजी उठे और बिना किसी की ओर देखे सीधे गेट से बाहर निकल गये। पीछे हक्के-बक्के सारे के सारे लोगों को अवाक् छोड़कर भइया भी मेरा हाथ पकड़कर बाहर निकल लिये।
दूसरे ही दिन भइया ने अपने कालेज के ही प्राइमरी सेक्शन में मेरा एडमिशन करा दिया। दोनों स्कूल एकदम आमने-सामने थे। संयोग से टाई और बेल्ट छोड़कर बाकी सारा यूनीफार्म भी मैच कर गया। हॉ किताबें जरूर बदल गई। मगर प्रेयर के जगह वेदमंत्रों के पाठ और रंग-बिरंगे फूलों के गमलों की जगह महान विभूतियों की मूर्तियॉ और उनके प्रेरणास्पद विचारों ने जैसे सारा माहौल ही बदल दिया। रोज भइया के साथ स्कूल जाना और आना, रोज की समस्याओं को भइया के सहयोग से सुलझाना एवं उन्हीं की छत्रछाया में आगे बढ़ते जाना ही अब मेरी दिनचर्या थी।
-R P Rai
Purvanchal Gramin Bank
Gorakhpur